ग्रहों के अरिष्ट निवारण या ग्रहों के शुभ प्रभाव बढ़ाने हेतु रत्नों के धारण का प्रचलन प्राचीन काल से होता आ रहा है। भारतीय ज्योतिष प्रणाली में इसको प्राय:कर प्रत्येक ज्योतिषी अपने मार्गदर्शन में बहुतायत से इनका उपयोग बताया करते हैं। किन्तु रत्नों के उपयोग में बहुत अधिक सावधानी की आवश्यकता है। रत्न का उपयोग जहाँ एक और बहुत अधिक लाभकारी है वहीँ बिना सावधानी बिना जन्म कुंडली के गहन चिंतन के अभाव में खतरनाक भी सिद्ध हो सकता है। मात्र नाम राशि देखी और रत्न धारण कर लिया, किसी ने बता दिया भाग्येश गुरु है कमजोर अवस्था में है इसलिए भाग्य उदय नहीं हो रहा है, भाग्य की बढ़ोतरी हेतु पुखराज धारण कर लें या लग्नेश शुक्र कमजोर है, शत्रु राशि पर है या इस कारण से कमजोर है, आप तुरंत डायमंड पहन लें, इसका उपरत्न जरकन ही पहन लें, यह उचित नहीं है। रत्नों का वास्तव में प्रभाव होता है इनमे सम्बंधित ग्रहों की रश्मियाँ समाहित रहती है अतः ये निश्चित ही प्रभाव बढ़ाने में कारगर है किन्तु ये सम्बंधित भाव का शुभ ही प्रभाव बढ़ाएंगे यह निश्चित नहीं है। इसके लिए एक तो रत्न का दोष रहित होना आवश्यक है, अर्थात रत्न चाहे बिलकुल असली हो या असली रत्न के उप रत्न हों, वे साफ होने चाहिए। यह देख लेना चाहिए कि रत्न - उपरत्न में कोई चीर आदि तो दिखाई नहीं दे रही है, वो किसी प्रकार से खंडित तो नहीं है, साथ ही छींटे रहित भी है या नहीं आदि बातों की पूरी तरह जांच कर लेनी चाहिए या किसी रत्न विशेषज्ञ को दिखाकर पूछ लेना चाहिए । यह तो रत्न धारण करने के बारे में एक पक्ष हुआ इससे भी शक्तिशाली जो पक्ष है उसके अनुसार आप रत्न द्वारा अपनी जन्मकुंडली के कौनसे भाव के शुभ प्रभाव को बढ़ाने चाहते हैं, जिस भाव के शुभ प्रभाव को आप बढ़ाना चाहते हैं उस भाव से संबंधित दूसरी राशि किस भाव का प्रतिनिधित्व कर रही है, यह देखकर रत्न धारण करना पहले बताई सावधानी से भी अधिक सावधानी बरतने योग्य बात है। भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुसार नौ ग्रहों में सूर्य चन्द्र को छोड़कर हर एक ग्रह को दो राशियों का स्वामी माना गया है अर्थात सूर्य चन्द्र के अलावा हर ग्रह जन्मकुंडली के दो भावों से सम्बंधित है यानी उनका स्वामी है। यदि कुंडली के किसी भाव के प्रभाव को बढ़ाना है तो उस भाव में जो राशि है उसके स्वामी से सम्बंधित ग्रह के अनुसार रत्न धारण करवाया जाता है। यह उस स्थिति में तो सही कहा जा सकता है जब वह ग्रह कुंडली के ऐसे दूसरे भाव का भी स्वामी हो जो की शुभ ही समझा जाता हो, जैसे कोई ग्रह केंद्र त्रिकोण दोनों ही शुभ भावों का स्वामी हो। इसे उदाहरण द्वारा भी समझें जैसे मेष लग्न है जिसका स्वामी मंगल ग्रह है, इस भाव का स्वामी मंगल शत्रु राशि पर या कुंडली में ऐसी पोजीशन में जिसके कारण हम इसे कमजोर समझ रहे हैं, जिसके लिए रत्न के रूप में मूंगा धारण एक उपचार है। निश्चित ही अच्छा मूंगा मंगल ग्रह को मजबूती दे सकता है किन्तु यहाँ प्रथम भाव (लग्न) के साथ मंगल के स्वामित्व से संबंधित दूसरी राशि राशि वृश्चिक जो कुंडली के आठवें भाव में है के प्रभाव में भी इससे बढ़ोत्तरी होगी, परिणामतः मंगल की दशा अन्तर्दशा में भी शुभ एवं अशुभ दोनों तरह के फल प्राप्त होंगे। अतः मेरी दृष्टि में उक्त स्थिति में मूंगा धारण करना उचित नहीं है। वहीँ यदि मंगल ऐसे दो भावों का स्वामी हो, जो दोनों ही भाव शुभ समझे जाते हों, जैसे लग्न कर्क हो तब मंगल केंद्र त्रिकोण (पंचम एवं नवम ) दोनों शुभ भावों का स्वामी होगा, मूंगा धारण करने से दोनों ही शुभ भावों के प्रभाव में बढ़ोतरी होगी जो कि किसी भी दृष्टि से अनुचित नहीं है। अतःकिसी भी भाव के शुभ प्रभाव को बढ़ाने या उसके स्वामी ग्रह के शुभ प्रभाव को बढ़ाने में इस एक पक्ष को सबसे अधिक ध्यान में रखा जाकर रत्न धारण किया जाना चाहिए अन्यथा लाभ की जगह हानि भी संभावित है ।
Tuesday, 25 August 2015
ग्रह शान्ति या ग्रहों के शुभ प्रभाव बढ़ाने हेतु रत्नों के उपयोग में क्या रखनी चाहिए सावधानियां
ग्रहों के अरिष्ट निवारण या ग्रहों के शुभ प्रभाव बढ़ाने हेतु रत्नों के धारण का प्रचलन प्राचीन काल से होता आ रहा है। भारतीय ज्योतिष प्रणाली में इसको प्राय:कर प्रत्येक ज्योतिषी अपने मार्गदर्शन में बहुतायत से इनका उपयोग बताया करते हैं। किन्तु रत्नों के उपयोग में बहुत अधिक सावधानी की आवश्यकता है। रत्न का उपयोग जहाँ एक और बहुत अधिक लाभकारी है वहीँ बिना सावधानी बिना जन्म कुंडली के गहन चिंतन के अभाव में खतरनाक भी सिद्ध हो सकता है। मात्र नाम राशि देखी और रत्न धारण कर लिया, किसी ने बता दिया भाग्येश गुरु है कमजोर अवस्था में है इसलिए भाग्य उदय नहीं हो रहा है, भाग्य की बढ़ोतरी हेतु पुखराज धारण कर लें या लग्नेश शुक्र कमजोर है, शत्रु राशि पर है या इस कारण से कमजोर है, आप तुरंत डायमंड पहन लें, इसका उपरत्न जरकन ही पहन लें, यह उचित नहीं है। रत्नों का वास्तव में प्रभाव होता है इनमे सम्बंधित ग्रहों की रश्मियाँ समाहित रहती है अतः ये निश्चित ही प्रभाव बढ़ाने में कारगर है किन्तु ये सम्बंधित भाव का शुभ ही प्रभाव बढ़ाएंगे यह निश्चित नहीं है। इसके लिए एक तो रत्न का दोष रहित होना आवश्यक है, अर्थात रत्न चाहे बिलकुल असली हो या असली रत्न के उप रत्न हों, वे साफ होने चाहिए। यह देख लेना चाहिए कि रत्न - उपरत्न में कोई चीर आदि तो दिखाई नहीं दे रही है, वो किसी प्रकार से खंडित तो नहीं है, साथ ही छींटे रहित भी है या नहीं आदि बातों की पूरी तरह जांच कर लेनी चाहिए या किसी रत्न विशेषज्ञ को दिखाकर पूछ लेना चाहिए । यह तो रत्न धारण करने के बारे में एक पक्ष हुआ इससे भी शक्तिशाली जो पक्ष है उसके अनुसार आप रत्न द्वारा अपनी जन्मकुंडली के कौनसे भाव के शुभ प्रभाव को बढ़ाने चाहते हैं, जिस भाव के शुभ प्रभाव को आप बढ़ाना चाहते हैं उस भाव से संबंधित दूसरी राशि किस भाव का प्रतिनिधित्व कर रही है, यह देखकर रत्न धारण करना पहले बताई सावधानी से भी अधिक सावधानी बरतने योग्य बात है। भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुसार नौ ग्रहों में सूर्य चन्द्र को छोड़कर हर एक ग्रह को दो राशियों का स्वामी माना गया है अर्थात सूर्य चन्द्र के अलावा हर ग्रह जन्मकुंडली के दो भावों से सम्बंधित है यानी उनका स्वामी है। यदि कुंडली के किसी भाव के प्रभाव को बढ़ाना है तो उस भाव में जो राशि है उसके स्वामी से सम्बंधित ग्रह के अनुसार रत्न धारण करवाया जाता है। यह उस स्थिति में तो सही कहा जा सकता है जब वह ग्रह कुंडली के ऐसे दूसरे भाव का भी स्वामी हो जो की शुभ ही समझा जाता हो, जैसे कोई ग्रह केंद्र त्रिकोण दोनों ही शुभ भावों का स्वामी हो। इसे उदाहरण द्वारा भी समझें जैसे मेष लग्न है जिसका स्वामी मंगल ग्रह है, इस भाव का स्वामी मंगल शत्रु राशि पर या कुंडली में ऐसी पोजीशन में जिसके कारण हम इसे कमजोर समझ रहे हैं, जिसके लिए रत्न के रूप में मूंगा धारण एक उपचार है। निश्चित ही अच्छा मूंगा मंगल ग्रह को मजबूती दे सकता है किन्तु यहाँ प्रथम भाव (लग्न) के साथ मंगल के स्वामित्व से संबंधित दूसरी राशि राशि वृश्चिक जो कुंडली के आठवें भाव में है के प्रभाव में भी इससे बढ़ोत्तरी होगी, परिणामतः मंगल की दशा अन्तर्दशा में भी शुभ एवं अशुभ दोनों तरह के फल प्राप्त होंगे। अतः मेरी दृष्टि में उक्त स्थिति में मूंगा धारण करना उचित नहीं है। वहीँ यदि मंगल ऐसे दो भावों का स्वामी हो, जो दोनों ही भाव शुभ समझे जाते हों, जैसे लग्न कर्क हो तब मंगल केंद्र त्रिकोण (पंचम एवं नवम ) दोनों शुभ भावों का स्वामी होगा, मूंगा धारण करने से दोनों ही शुभ भावों के प्रभाव में बढ़ोतरी होगी जो कि किसी भी दृष्टि से अनुचित नहीं है। अतःकिसी भी भाव के शुभ प्रभाव को बढ़ाने या उसके स्वामी ग्रह के शुभ प्रभाव को बढ़ाने में इस एक पक्ष को सबसे अधिक ध्यान में रखा जाकर रत्न धारण किया जाना चाहिए अन्यथा लाभ की जगह हानि भी संभावित है ।
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